Sunday, May 1, 2016

01-05-2016

                कड़वी सच्चाई.

नदी तालाब में नहाने में शर्म आती है,
और
स्विमिंग पूल में तैरने को फैशन कहते हैं,
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गरीब को एक रुपया दान नहीं कर सकते,
और
वेटर को टिप देने में गर्व महसूस करते हैं.
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माँ बाप को एक गिलास पानी भी नहीं दे सकते,
और
नेताओं को देखते ही वेटर बन जाते हैं.
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बड़ों के आगे सिर ढकने में प्रॉब्लम है,
लेकिन
धूल से बचने के लिए 'ममी' बनने को भी तैयार हैं.
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पंगत में बैठकर खाना दकियानूसी लगता है,
और
पार्टियों में खाने के लिए लाइन लगाना अच्छा लगता है.
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बहन कुछ माँगे तो फिजूल खर्च लगता है,
और
गर्लफ्रेन्ड की डिमांड को अपना सौभाग्य समझते हैं.
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गरीब की  सब्ज़ियाँ खरीदने मे इन्सल्ट होती है,
और
शॉपिंग मॉल में अपनी जेब कटवाना गर्व की बात है.
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बाप के मरने पर सिर मुंडवाने में हिचकते हैं.
और
'गजनी' लुक के लिए हर महीने गंजे हो सकते हैं.
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कोई पंडित अगर चोटी रखे तो उसे एन्टीना कहते हैं.
और
शाहरुख के 'डॉन' लुक के दीवाने बने फिरते हैं.
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किसानों के द्वारा उगाया अनाज खाने लायक नहीं लगता,
और
उसी अनाज को पॉलिश कर के कम्पनियाँ बेचें,
तो
क्वालिटी नजर आने लगती है...॥



ये सब मात्र
            अपसंस्कृति ही नही,
वरन्
देश व समाज का
             दुर्भाग्य भी है ।


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વીતી ગયેલા દિવસો હવે
        યાદ નથી કરવા.....
        બાકી રહેલા દિવસો હવે
        બરબાદ નથી કરવા.

        શુ મળ્યુ અને શુ ગુમાવ્યું
        જીવનમાં....
        જવાદો ને યાર હવે કોઇ
        હિસાબ નથી કરવા.

        ફરીયાદ આપણે શું કરીએ
        ઇશ્વરના દરબારમાં.....

        ઇશ્વરને પણ ફરિયાદ છે
        આપણા વ્યવહારમાં...
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एक गुजराती एक डॉक्टर से
बोला -

डॉक्टर साहब
आप घर चलने की कितनी
फीस लेते हो ?

डॉक्टर - तीन सौ रुपये

गुजराती - ठीक है ...चलो डॉक्टर साहब


डॉक्टर ने अपनी गाड़ी निकाली
और गुजराती के साथ उसके घर
आ गया !

डॉक्टर बोला - मरीज कहाँ है?

 गुजराती - मरीज कोई नहीं है
साहब ....टैक्सी वाला पांचसौ
रुपये मांग रहा था और आप
तीनसाै में ले आये !

डॉक्टर बेहोश।.............

गुजराती  भुका काढी नाखे हो भाई !
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