Wednesday, August 31, 2016

30-08-2016

(जैन मुनि तरुण सागर जी की दिगंबर काया पर अभद्र टिप्पणी करने वाले संगीतकार विशाल ददलानी और कांग्रेसी चिरकुट तहसीन पूनावाला को जवाब देती मेरी नई कविता)
रचनाकार-कवि गौरव चौहान इटावा उ प्र 🌹
त्याग तपस्या सहनशीलता की महिमा ना जानी,
बॉलीवुड का एक गवैया,बन बैठा है ज्ञानी,
और वाड्रा का जीजा भी देखो पूनावाला,
पाखंडी ने जैन मुनी पर कीचड आज उछाला,
जैसे इनके दल हैं,वैसे दिल हैं इनके काले,
कांग्रेस की पैदाइश हैं,झाडू हाथ संभाले,
खुद की तुम औकात जान लो फिर अपना मुँह खोलो,
पहले संत तरुण सागर के बाल बराबर हो लो,
इच्छाओं की आहुति देना खेल नही बचकाना,
सरल नही है आत्मज्ञान इस दुनिया को समझाना,
कीचड को धोने में खुद गंगा होना पड़ता है,
एक संत को तब जाकर नंगा होना पड़ता है,
जिनवाणी का जिन्हें एक भी अक्षर नही पता है,
जिन्हें दिगंबर और नग्न में अंतर नही पता है,
काम क्रोध पर कठिन नियंत्रण जिनको नही दिखा है,
तन पर शुभ अदृश्य आवरण,जिनको नही दिखा है,
एक देह नंगी देखी बस,मन का मर्म न देखा,
मोक्ष द्वार को दिखलाता ये पावन धर्म न देखा,
पावनता की ज्ञानपीठ पर बोल कहे शैतानी,
मुनि को नंगा बोल गया है ये विशाल ददलानी,
बचपन को दुलार करती,कोमल करुणा से पूछो,
नग्न देह की पावनता,अपनी अम्मा से पूछो,
खुद का धर्म पड़ा लफड़ों में,फैला गड़बड़ झाला,
जैन धर्म पर बोल रहा है पागल पूनावाला,
कवि गौरव चौहान कहे,कुछ अपने पर भी बोलो,
फतवों पर,शरिया पर,बकरे कटने पर भी बोलो,
अरे कपूतों,अय्याशी से बाहर आकर देखो,
तप की शक्ति त्याग की महिमा खुद भी गाकर देखो,
इच्छाओं पर विजय श्री का सुख भी पाकर देखो,
बिन कपड़ों के अपने तन का बोझ उठाकर देखो,
तेल निकल जायेगा केवल पानी याद करोगे,
एक दिवस के तप में अपनी नानी याद करोगे,
जैन समाज अहिंसक है,तुम इसीलिए गुर्राए,
संतो का अपमान किया,फिर मंद मंद मुस्काये,
पैंगबर पर गलती से भी कुछ मुँह से आ जाता,
पूरा मुस.....