Wednesday, April 13, 2016

13-04-2016

प्रभाती कल्पना - ज़िंदगी कोई तुजसा ना

जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको,
याद आया बहुत एक पेड़ का साया मुझको.

अब भी रौशन है तेरी याद से घर के कमरे,
रोशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको.

मेरी ख़्वाहिश थी की मैं रौशनी बाँटू सबको,
जिंदगी तूने बहुत जल्द बुझाया मुझको.

चाहने वालों ने कोशिश तो बहुत की लेकिन,
खो गया मैं तो कोई ढूँढ न पाया मुझको.

सख़्त हैरत में पड़ी मौत ये जुमला सुनकर,
आ, अदा करना है साँसों का किराया मुझको.

शुक्रिया तेरा अदा करता हूँ जाते-जाते,
जिंदगी तूने बहुत रोज़ बचाया मुझको.

शुभ दिन
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एक बार
सत्यनारायण कथा की
आरती मेरे सामने आने पर
मैंने छाँट कर जेब में से कटा फटा पाँच रू का नोट कोई देखे नहीं ,
ऐसा डाला,
वहाँ अत्यधिक ठसाठस भीड़ थी,
मेरे कंधे पर ठीक पीछे वाले सज्जन ने थपकी मार कर
मेरी ओर ५०० रू का नोट बढ़ाया,
मैंने उनसे नोट ले कर आरती में डाल दिया,
अपने मात्र ५ रू डालने पर थोड़ी लज्जा भी आई ।
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बाहर निकलते समय
मैंने उन सज्जन को श्रद्धा पूर्वक नमस्कार किया
तब उन्होंने बताया कि ५ रू का नोट निकालते समय
५०० का नोट मेरी ही जेब से गिरा था,
जो वे मुझे दे रहे थे.

बोलो सत्यनारायण भगवान की जै !!!
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