Tuesday, July 26, 2016

26-07-2016

एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा :
नष्ट होने वाले इस शरीर में नष्ट ना होने वाला आत्मा कैसे रहती है ।
गुरूजी का जवाब :
दूध उपयोगी है, किंतु एकही दिन के लिए। फिर वो बिगड जाता है ।
दूध में एक बूंद छाछ डालने से वह दही बन जाता है। जो केवल एक और दिन टिकता है ।
दही का मंथन करने पर मक्खन बन जाती है। यह एक और दिन टिकता है ।
मक्खन को उबालकर घी बनता है ।
धी कभी बिगडता नहीं ।
एक दिन में बिगडने वाले दूध में ना बिगड़ने वाला घी छिपा है ।
इसी तरह अशाश्वत शरीर में शाश्वत आत्मा रहती है ।

मानव शरीर दूध
दैवी स्मरण छाछ
सेवा भाव मक्खन
साधना करना धी

मानव शरीर को साधना से पिघलाने पर आत्मा पवित्रता प्राप्त करती है ।
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सीखने वाली बात

एक बुज़ुर्ग से किसी ने पूछा, "कुछ नसीहत कर दीजिये"।
उन्होंने अजीब सवाल किया, "कभी बर्तन धोये हैं?"
उस शख्श ने हैरान होकर जवाब दिया, "जी धोये हैं"
बुजुर्ग ने पूछा, "क्या सीखा?
उस शख्श ने कहा, "इसमें सीखने वाली बात क्या है?"
बुज़ुर्ग ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
"बर्तन को बाहर से कम
अन्दर से ज़्यादा धोना पड़ता है"।
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हम भी शरीर को धोने में लगे हुए है ।
मन को कब धोएंगे?....
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